{ रवीन्द्रनाथ टैगोर और मेरे विद्यालयों की तुलना }“रवीन्द्रनाथ टैगोर ने हम लोगों को आत्माभिव्यक्ति के एक स्वाभाविक रूप में, पक्षियों की भाँति सहज ढंग से गीत गाना सिखाया।”एक दिन प्रातः काल जब मैंने राँची के अपने विद्यालय के एक चौदह वर्षीय छात्र भोलानाथ के सुरीले गायन की प्रशंसा की, तो उसने यह बात बतायी। बीच-बीच में वह गाता ही रहता था। चाहे उसे कोई गाने के लिये कहे या न कहे, वह सुरीली तानों की झड़ी लगा देता था। मेरे विद्यालय में आने से पहले वह रवीन्द्रनाथ टैगोर के बोलपुर स्थित सुप्रसिद्ध शान्तिनिकेतन विद्यालय का छात्र रहा था।मैंने उससे