श्री चैतन्य महाप्रभु - 17

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प्रकाशानन्द सरस्वती का उद्धारकाशी में सभी मायावादी जहाँ-तहाँ प्रभु की निन्दा कर रहे थे। जिससे तपनमिश्र, चन्द्रशेखर और वह विप्र जो श्रीमन्महाप्रभु का दर्शन कर प्रभु का भक्त बन चुका था, बहुत दुःखी होते थे। उस विप्र ने विचार किया कि प्रभु तो स्वयं भगवान् हैं, यदि एक बार वे सब मायावादी संन्यासी प्रभु का दर्शन करें, तो अवश्य ही वे सभी भक्त हो जायेंगे। अतः उन संन्यासियों को प्रभु से मिलाने के लिए उसने एक योजना बनायी। उसने सभी मायावादी संन्यासियों को अपने घर पर आमन्त्रित किया। तत्पश्चात् वह प्रभु के पास गया और उनसे हाथ जोड़कर निवेदन किया–