श्री चैतन्य महाप्रभु - 16

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पठानों पर कृपाबलभद्र भट्टाचार्य लोगों की भीड़ से तङ्ग आ चके थे। इसके अतिरिक्त महाप्रभु कभी-कभी आविष्ट होकर यमुनामें छलाङ्ग लगा देते थे, उस समय वे बहुत कष्ट से प्रभु को बाहर निकालते थे। अतः वे विचार करने लगे कि यदि कभी प्रभु अकेले रहते समय आविष्ट होकर यमुनामें छलाङ्ग लगा देंगे, तो अनर्थ हो जायेगा। इसलिए उन्होंने प्रभु को वृन्दावन से जगन्नाथ पुरी लौटा ले जाने का विचार किया और प्रभु से वापस चलने की प्रार्थना की। यद्यपि प्रभु की वृन्दावन छोड़ने की इच्छा नहीं हो रही थी, तथापि बलभद्र एवं उसके सेवक की प्रसन्नता के लिए प्रभु ने