अमोघ का उद्धाररथयात्रा के कुछ दिन बाद एक दिन सार्वभौम भट्टाचार्यने श्रीमन्महाप्रभु को अपने घरमें प्रसाद पाने के लिए आमन्त्रित किया। जब महाप्रभु उनके घरमें उपस्थित हुए और प्रसाद पाने के लिए बैठ गये तो भट्टाचार्य ने उनके आगे अन्न एवं अनेक व्यज्जनों का ढेर लगा दिया। यह देखकर महाप्रभु बोले– “भट्टाचार्यजी! यह आप क्या कर रहे हैं? क्या मैं अकेला इतना खा सकता हूँ?”यह सुनकर सार्वभौम भट्टाचार्य हँसते-हँसते कहने लगे– “प्रभो ! जगन्नाथ मन्दिर में तो आप 52 बार सैकड़ों मन अन्न खा जाते हैं तथा द्वारका में 16,108 रानियों के घरोंमें खाते हैं। इसके अतिरिक्त व्रज में अन्नकूट