श्रीयमराज जी

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जिह्वा न वक्ति भगवद्गुणनामधेयं चेतश्च न स्मरति तच्चरणारविन्दम्। कृष्णाय नो नमति यच्छिर एकदापि तानानयध्वमसतोऽकृतविष्णुकृत्यान्॥ – ( श्रीमद्भा० ६ । ३। २९)“जिनकी जीभ भगवान् के मङ्गलमय गुणो एवं परम पवित्र नामो का वर्णन नहीं करती, जिनका चित्त भगवान् के चरणकमलो का चिन्तन नहीं करता, जिनका सिर एक बार भी श्रीकृष्णचन्द्र को प्रणाम करने के लिये नही झुका भगवान् विष्णु के पावन कर्मों से सर्वथा पृथक् रहने वाले केवल उन दुष्टो को ही तुम लोग यहाॅ ( यमपुरी मे ) लाया करो।” यह यमराज जी ने अपने दूतो को आदेश दिया है। जब भी यमदूत हाथ मे पाश लेकर मर्त्यलोक के मरणासन्न