एक योगी की आत्मकथा - 9

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{ परमानन्दमग्न भक्त और उनकी ईश्वर के साथ प्रेमलीला }“छोटे महाशय, बैठो। मैं अपनी जगन्माता से वार्तालाप कर रहा हूँ।” मैंने अत्यन्त श्रद्धा के साथ कमरे में चुपचाप प्रवेश किया था। मास्टर महाशय के देवता सदृश रूप ने मुझे चकाचौंध कर दिया। श्वेत रेशम समान दाढ़ी और विशाल तेजस्वी नेत्रों से युक्त वे पवित्रता का साक्षात् अवतार लग रहे थे। ऊपर की ओर उठा हुआ उनका चेहरा और जुड़े हुए हाथ देखकर मैं समझ गया कि उनके पास मेरे उस प्रथम आगमन ने उनकी अर्चना में बाधा डाली है।उस समय तक मुझे जितने धक्के लगे थे उन सब से बढ़कर