श्वेत का उद्धारएक बार प्रभु श्रीरामचन्द्र पुष्पक यान से चलकर तपोवनों का दर्शन करते हुए महर्षि अगस्त्य के यहाँ गये। महर्षि ने उनका बड़ा स्वागत किया । अन्त में अगस्त्य जी विश्वकर्मा का बनाया एक दिव्य आभूषण उन्हें देने लगे । इस पर भगवान् श्रीराम ने आपत्ति की और कहा- 'ब्रह्मन्! आपसे मैं कुछ लूँ, यह बड़ी निन्दनीय बात होगी। क्षत्रिय भला, जान - बूझकर ब्राह्मण का दिया हुआ दान क्यों कर ले सकता है।' फिर अगस्त्यजी के अत्यन्त आग्रह करने पर उन्होंने उसे ले लिया और पूछा कि 'वह आभूषण उन्हें कैसे मिला था । 'अगस्त्यजी ने कहा- "रघुनन्दन