मानव की ह्रासोन्मुखी प्रवृत्ति को जब रोकना अनिवार्य हो चला था, मुगल शासन के अन्तर्गत जब मजहबी तास्सुब चरम सीमा पर था, स्वधर्म त्याग के लिये प्रजा को नाना कष्ट देकर विवश किया जा रहा था, ऐसे ही समय मे साम्य और एकता के प्रतीक भक्तप्रवर श्रीगुरु नानकदेव जी प्रकाश मे आये थे। गुरुजी की फुलवारी मे क्रमश गुरु श्री गोविन्द सिंह जी पर्यन्त एक से एक तेजस्वी और प्रतापी महापुरुषो के आविर्भाव की परम्परा भारत भूमि के पथ को पावन प्रकाशमय करती रही।श्रीनानक जी विक्रम 1526 [ सन् 1469 ] मे पंजाबप्रदेशान्तर्गत जिला लाहौर के पास जहाँ जन्मे थे,