संतोषजनक जीवन

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संतोषजनक जीवनजेठ दुपहरी की चिलचिलाती धूप मे ...मैंने घर आकर जैसे ही फ्रिज खोला , इसमें से उठती भभक ने मेरे दिमाग को भभका दिया ..."इसे भी अभी खराब होना था... मै तिलमिलाया...पानी की बोतल, जूस पैकेट सब उबल रहे थे...मेरा गुस्सा सातवे आसमान पर चढ़ गया...प्यास बुझाने के लिए किचन में से नोरमल पानी का गिलास उठा, होठों से सटाया..."छी... कोई कैसे पी सकता है ऐसा गर्म पानी... मुंह में भरा पानी बाहर पलट मैंने, गिलास पानी समेत सिंक में फेंका और दनदनाते हुए मैं लाले की दुकान के लिए निकल पड़ा ..."अंकल... एक चिल्ड पानी की बोतल और