आत्म सन्तुष्टि

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"आत्मसन्तुष्टि...दो दिनों से उसके पेट में अन्न का एक दाना भी नही गया था... जिस भी हलवाई की दूकान के सामने जाता सब उसे दुत्कार देते... जब ज्यादा भूख सताती तो म्यूनिसपैलिटी के नल से अधिक से अधिक पानी पीकर अपनी भूख शान्त कर लेता था रात होते ही खुले आसमान के नीचे पेट से पैर सटा धरती माँ की गोद में दुबक कर सो जाता दूसरे दिन सुबह होते ही सूरज की सुनहरी किरणें जब उसकी पलकों को चूमने लगीं तब धीरे से उसने अपनी अलसाई नजरों को इधर-उधर घुमा कर देखा अचानक पास पड़ी दो रोटियों पर उसकी