सावित्री को अपने पिता की चेतावनी बार बार स्मरण हो उठती, उसने गिनती लगाई, आज मास का अंतिम दिवस है। तपस्या और प्रेम की परीक्षा का आखिरी पड़ाव आ पहुँचा था। अंधे सास ससुर को खाना खिलाकर वह सत्यवान के साथ लकड़ियाँ काटने चलने लगी तो सत्यवान ने टोका, मैं ले आऊँगा तुम घर पर ही रहो किंतु सावित्री ने पिछले महीने से सत्यवान को एक पल भी अकेले न छोड़ा तो आज कैसे अकेले जाने देती। उसने पति के साथ राह ली, सत्यवान मुस्कुराये, कैकय देश की कन्याएं अपने संकल्प की दृढ़ होती हैं, फिर दोनों हाथ थामे जंगल