शास्त्री जी जैसे ही सौरीगृह में पहुँचें तो उन्हें देखकर शैलजा खुशी से रो पड़ी और उनसे बोली... "लीजिए!आपका लाल आपका इन्तजार कर रहा था" शास्त्री जी ने शैलजा से कुछ नहीं कहा,बस एक उत्साह भरी दृष्टि उस पर डाली और वें नवजात शिशु के पास चारपाई के नीचें बैठ गए और लालटेन की मद्धम रौशनी में उन्होंने कपड़े में लिपटे हुए शिशु को निहारा और हौले से उसके माथे को चूमा फिर शैलजा से बोलें.... "मैं बाहर जा रहा हूँ, इतनी खुशी मुझसे बरदाश्त ना होगी" और ये कहते कहते उनकी आँखें भर आईं,जाते जाते शैलजा से कहते गए