भूतो की दुनिया

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भादों का महीना। काली अँधियारी रात। कभी-कभी रह-रहकर हवा का तेज झोंका आता था और आकाश में रह-रहकर बिजली भी कौंध जाती थी। रमेसर काका अपने घर से दूर घोठे पर मड़ई में लेटे हुए थे। रमेसर काका का घोठा गाँव से थोड़ीदूर एक गढ़ही (तालाब)के किनारे था। गढ़ही बहुत बड़ी नहीं थी पर बरसात में लबालब भर जाती थी और इसमें इतने घाँस-फूँस उग आते थे कि डरावनी लगने लगती थी।इसी गढ़ही के किनारे आम के लगभग 5-7 मोटे-मोटे पेड़ थे, दिन में जिनके नीचे चरवाहे गोटी या चिक्का, कबड्डी खेला करते थे और मजदूर या गाँव का कोई