आस्था तो नीचे चली गई लेकिन एकांश का रुकना तो अब वह मुश्किल हो रहा था ऊपर से आस्था का उसे यू इग्नोर करना उसे तकलीफ दे रहा था रूद्र की खुशी के लिए वह वहीं खड़ा हुआ था और दूर से ही आस्था को देखता रहा एकांश लगातार बस अपनी आस्था की छवि अपने आंखों में समा रहा था अगर उसके बस में होता तो वह जल्दी से जाकर आस्था को अपनी बाहों में भर लेता और इस कदर सब से छुपा दे ताकि कोई भी उसे देख ना पाए उसे अपनी फिलिंग्स पर अपने जज्बातों पर काबू रखना