समर्पण- सच्चा प्रेम प्रेम धर्म का दूसरा नाम है। सच्चा प्रेम अमुल्य है। उसमे स्वार्थ नही होता। वह बदलता नही। वह शुद्ध और निर्मल होता है। वह सदैव बढ़ता है, कभी घटता नही। वह सहज होता है। प्रेम ऐसा ही होता है,लेकिन जिम्मेदारियों के आगे ये प्रेम गौण हो जाता है। हां तुम कह सकती हो की मुझे प्रेम करने आया ही नहीं या मैं प्रेम करना जानता ही नही तो सुनो, प्रेमी से पहले मैं एक पुरुष हूं। जिसे ये समाज आवारा, उज्जड्ड, निकम्मा, नकारा और आजकल तो लेटेस्ट है बेरोजगार इन्हीं नामो से संबोधित किया जाता है,