बत्तीस साल पुरानी उस बीती से पहले माँ और पपा की आपसी जोड़-तोड़ से मैं अपने को अलग रखा करती थी. जिस तनातनी को वे आपस में बाँटते उस पर अपना साझा कभी न लगाती..... आपस में वे बोलचाल बन्द रखें या खोलें, अपने फासले बढ़ाएँ या घटाएँ मैं कभी बीच में न पड़ती.... दोनों पर बराबर यही प्रदर्शित करती: मैं कुछ नहीं जानती.... मैं कुछ नहीं समझती.... लेकिन बीते उस दिन ने सब उलट दिया..... 1 दोपहर में नीना निझावन आई थी, अपनी बेटी के साथ..... ’’वेलकम,गरल्र्ज़, वेल्कम,’’ पपा की आवाज़ सीढ़ियों पर गूँजी थी। दो शयनकक्ष वाले