मुजाहिदा - ह़क की जंग - भाग 20

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भाग 20निकाह को पूरा एक महीना गुजर गया था। अब जाके फिज़ा को वहाँ के तौर-तरीके, रवायतें और माहौल समझ में आया था। हर वक्त मेहमान खाना मेहमानों से भरा रहता। दिन भर दुआयें माँगने वालों का ताँता लगा रहता। आरिज़ के अब्बू जान जब मेहमान खाने से फारिग हो जाते तो दालान में आकर बैठ जाते। कभी-कभी कुछ नजदीकी लोगों की महफिल वहीं तख्त पर जम जाती थी। तब घर की तीनों दुल्हनों को बाहर आने की मनाही होती थी। वैसे अफसाना भाभी साहब जरूरी काम हो तो निबटा लिया करती थीं। उनके सिर से दुपट्टा कभी नही हटा।