यादों के पिटारे से

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हमारे जमाने में साइकिल तीन चरणों में सीखी जाती थी , पहला चरण कैंची और दूसरा चरण डंडा, तीसरा चरण गद्दी...तब साइकिल चलाना इतना आसान नहीं था क्योंकि तब घर में साइकिल बस पापा या चाचा चलाया करते थे. तब साइकिल की ऊंचाई 24 इंच हुआ करती थी जो खड़े होने पर हमारे कंधे के बराबर आती थी | ऐसी साइकिल से गद्दी चलाना मुनासिब नहीं होता था।"कैंची" वो कला होती थी जहां हम साइकिल के फ़्रेम में बने त्रिकोण के बीच घुस कर दोनों पैरों को दोनों पैडल पर रख कर चलाते थे।और जब हम ऐसे चलाते थे तो