भालू नाच

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1859 ई० । गर्मियों के दिन सत्तावनी क्रान्ति दबा दी गई। आज कुछ इसकी असफलता पर प्रसन्न हैं कुछ दुखी। सबके अपने तर्क हैं कुछ कुतर्क भी। कुछ इसे राष्ट्रीय स्वतंत्रता आन्दोलन नहीं मानते, कुछ इसे स्वतंत्रता का आन्दोलन स्वीकार करते हैं। गोनर्द का क्षेत्र सबसे बाद में अंग्रेजों के कब्जे में आ पाया। आन्दोलनकारियों और अंग्रेजों के बीच लमती ( जनपद गोण्डा उ०प्र०) का युद्ध 1858 के अन्तिम समय में लड़ा गया। इसी के बाद राजा देवी बख्श तुलसीपुर की रानी ईश्वरी देवी आदि हिमालय के पर्वतीय क्षेत्र दांग देवखुर चले गए। बेगम हजरत महल बिरजीस कद्र के साथ