बुच्चू

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रात के बारह बजे थे। चाँद भले ही ऊबड़-खाबड़, धरातल वाला क्षेत्र हो पर उससे निःसृत चांदनी धरती पर रस बरसा रही थी। सिवान में खड़े पेड़-पौधे, ऊढ़ कभी कभी किसी मिथ्या भ्रम को पैदा कर देते । पुरवा गमकी हुई थी । बैसाख के दिन। गेहूँ दवाई करते ट्रैक्टरों की खरखराहट गतिरोधों के बीच भी एक लय पकड़ती हुई । कोई बोलता तो दूर तक आवाज़ जाती । ऊधौ का गेहूँ घर में आ चुका था । ओसारे में सो रहे बुच्चू को शरीर में दर्द का अनुभव हुआ। वे सोचते रहे ऊधौ को पुकारें या नहीं। जब दर्द