लगभग 527 वर्ष पूर्व की बात है। उस समय भारतवर्ष परमुसलमानों का राज्य था। हिन्दुओं पर अनेक प्रकार के अत्याचार हो रहे थे और वे निर्भीक रूप से अपने धर्म का पालन नहीं कर पाते थे। किन्तु उससे भी अधिक दयनीय अवस्था वैष्णव-धर्म की थी, क्योंकि मुसलमानों के साथ-साथ पाखण्डी हिन्दु लोग भी वैष्णवों के घोर विरोधी हो गये थे। मुसलमानों का सङ्ग करते-करते उनकी बुद्धि भ्रष्ट हो चुकी थी तथा उनका आचरण मुसलमानों के जैसा ही हो गया था। वैसे तो उस समय वैष्णव ही गिने-चुने रह गये थे तथा जो थे भी, वे पाखण्डी लोगों द्वारा उपहास तथा