55 कम्मेआना पहुँचते पहुँचते दिन ढलने लगा था । बस से उतरते ही सुभाष को अपने दो चार दोस्त मित्र मिल गये तो वह वहीं रुक कर उनसे बातें करने लगा । जयकौर ने उसे वहाँ मस्त देखा तो अकेली ही घर की ओर चल पङी । कदम आगे बढाती थी पर पैर मानो पीछे जा रहे थे । एक एक पैर मन भर का हो गया लगता था । एक महीने से थोङे दिन ऊपर हो गये उसका ब्याह हुए , अगर इसे ब्याह मानें तो , पर अब तक उसके मायके से न तो कोई