श्रीमद् ‍भगवद्‍गीता - अध्याय 18 - अंतिम

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अध्याय अट्ठारह अथाष्टादशोऽध्यायः- मोक्षसंन्यासयोगत्याग का विषयअर्जुन उवाच सन्न्यासस्य महाबाहो तत्त्वमिच्छामि वेदितुम्‌ । त्यागस्य च हृषीकेश पृथक्केशिनिषूदन ৷৷18.1৷৷ arjuna uvāca saṅnyāsasya mahābāhō tattvamicchāmi vēditum. tyāgasya ca hṛṣīkēśa pṛthakkēśiniṣūdana৷৷18.1৷৷ भावार्थ : अर्जुन बोले- हे महाबाहो! हे अन्तर्यामिन्‌! हे वासुदेव! मैं संन्यास और त्याग के तत्व को पृथक्‌-पृथक्‌ जानना चाहता हूँ ৷৷18.1॥  श्रीभगवानुवाच काम्यानां कर्मणा न्यासं सन्न्यासं कवयो विदुः । सर्वकर्मफलत्यागं प्राहुस्त्यागं विचक्षणाः ৷৷18.1৷৷ śrī bhagavānuvāca kāmyānāṅ karmaṇāṅ nyāsaṅ saṅnyāsaṅ kavayō viduḥ. sarvakarmaphalatyāgaṅ prāhustyāgaṅ vicakṣaṇāḥ৷৷18.2৷৷ भावार्थ : श्री भगवान बोले- कितने ही पण्डितजन तो काम्य कर्मों के (स्त्री, पुत्र और धन आदि प्रिय वस्तुओं की प्राप्ति के लिए तथा रोग-संकटादि की निवृत्ति के लिए