जीवन सूत्र 441 योग विश्व को भारत की देनभगवान श्री कृष्ण ने गीता में कहा है:-यत्रोपरमते चित्तं निरुद्धं योगसेवया।यत्र चैवात्मनाऽऽत्मानं पश्यन्नात्मनि तुष्यति।(6.20)।इसका अर्थ है:-योग के अभ्यास से निरुद्ध चित्त जिस अवस्था में उपराम हो जाता है और जिस अवस्था में परमात्मा के ध्यान से शुद्ध हुई सूक्ष्म बुद्धि द्वारा परमात्मा को साक्षात करता हुआ सच्चिदानन्दघन परमात्मा में ही सन्तुष्ट रहता है। भगवान कृष्ण की इस दिव्य वाणी से हम योग के अभ्यास इन शब्दों को एक सूत्र के रूप में लेते हैं। जीवन सूत्र 442 चंचल मन को वश में करने योग आवश्यकवास्तव में चंचल मन को वश में करना