जीवन सूत्र 366 खुशी में संयमित और दुख में संतुलित रहेंगीता में भगवान श्री कृष्ण ने वीर अर्जुन से कहा है:- न प्रहृष्येत्प्रियं प्राप्य नोद्विजेत्प्राप्य चाप्रियम्।स्थिरबुद्धिरसम्मूढो ब्रह्मविद्ब्रह्मणि स्थितः।(5/20)।इसका अर्थ है:-जो प्रिय को प्राप्त होकर हर्षित नहीं होता और अप्रियको प्राप्त होकर उद्विग्न नहीं होता,वह स्थिरबुद्धि,संशयरहित, ब्रह्मवेत्ता पुरुष परब्रह्म परमात्मा में एकीभाव से नित्य स्थित है । भगवान कृष्ण की इस दिव्य वाणी में स्थितप्रज्ञ मनुष्य का एक महत्वपूर्ण लक्षण बताया गया है।जीवन सूत्र 367 मोह माया से परे रहेंवह मोह और माया से परे होता है।अब इसका अर्थ यह नहीं है कि उसके भीतर संवेदना नहीं होगी और वह निष्ठुर