कीर के उपवन की कली

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*कीर के उपवन की कली*भारत: -दिन दूर नहीं खंडित भारत को, पुनः अखंड बनाएंगे,गिलगित से गारो पर्वत तक, आजादी पर्व मनाएंगे। उस स्वर्ण दिवस के लिए आज से, कमर कसें बलिदान करें,जो पाया उसमें खो न जाएं,जो खोया उसका ध्यान करे।।यादें: -हृदय भीतर समाई बहुत सी कहानियाँकुछ अनमोल यादें तो कुछ अमिट निशानियाँभूले नहीं भुलाती वो नटखट नादानियाँवो पान के इक्के ईंट और रानियाँवो लूडो की साँप सीढ़ी वो कैरम की गोटियाँवो सावन के झूले वो माँ की नरम रोटियाँदिल को आज भी लुभाती हैं गुज़रे हुए ज़माने की रवानियाँवो बेतुकी सी हरकतें वो बेपरवाह मनमानियाँ।मनुष्य: -“संसार में केवल मनुष्य