हँसलोपैथी- डॉ. टी.एस. दराल

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बचपन से ही मेरी रुचि स्तरीय हास्य रचनाओं को पढ़ने एवं हास्य कवियों/लेखकों को देखने सुनने की अन्य कवियों या लेखकों की बनिस्बत कुछ ज़्यादा रही है। जब लिखना शुरू किया तो इसी शौक का असर मेरे खुद के लेखन पर भी पड़ा जिससे कुदरती तौर पर मैं खुद भी एक हास्य व्यंग्यकार बन गया। हास्य रचनाओं में भी मुझे वे हास्य रचनाएँ ज़्यादा बढ़िया लगती हैं जिनमें हास्य के साथ-साथ सामाजिक सरोकारों से जुड़ा कोई सन्देश य्य फ़िर सीख जुड़ी हो। दोस्तों..आज हास्य से जुड़ी बातें इसीलिए कि आज मैं हास्य कविताओं के एक ऐसे संकलन की बात करने