इंसान की नियति से बढ़कर कुछ भी नही हो सकता, हम यूं भी कह सकते है कि हम नियति के हाथों की एक कठपुतली है जिसको वो हमारे जन्म से लेकर मृत्यु तक प्रत्येक क्षण अपनी अंगुलियों पर नचाती है। नियति से लड़ना असम्भव है,इस बात का अहसास मुझे अभी हुआ जब मैं अपनी मृत्यु से बस चंद कदम दूर जमीन पर असमर्थ पड़ा हुआ अंतिम सांसे गिन रहा हूँ। पत्थरो के कई नुकीले लम्बे टुकड़े मेरे शरीर को आरपार कर चुके है,शरीर के घावों में से निकलते खून के असंख्य फब्बारो ने आसपास की सूखी जमीन को नम कर