घुंघरू

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घुंघरू आज ना जाने क्या हुआ था मुझे, वापस आ तो रहा था लेकिन लग रहा था कि कुछ ना कुछ पीछे छूट गया है। मैं जब गया था तो सोचा भी न था कि इस प्रकार से, इतनी बड़ी सौगात के साथ लौटूगाँ। मैं अपनी गाड़ी चला रहा था लेकिन विचारों में अभी भी वहीं रंगपुर का घुंघरू बैठा था। घुंघरू एक नौजवान जो अपने फन का उस्ताद है। अपनी ही धुन में रहता है, ना कोई लाग-लपेट बस जो कहता है वो सीधे-सपाट तरीके से कह देता है। एक बार तो उसका नाम सुनकर ही लगता है भला