दी औरते - (अंतिम क़िस्त)

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रात का प्रथम पहर आधे से ज्यादा बीत चुका था।चारो तरफ वातावरण शांत और खामोश था।दूर दूर तक किसी तरह की आवाज नही कोई आहट नही।कोई शोर नही।कुत्तों के भोकने की आवाजें भी नही आ रही थी।सुरेश खाट पर लेटा हुआ अपने बारे में ही सोच रहा था।आज वह जिंदगी के दोराहे पर आकर खड़ा हो गया था।एक रास्ता बेहद टेड़ा मेडा और झंझटों से भरा हुआ था।उस रास्ते का अंत विभा के पास जाकर होता था।दूसरा रास्ता बिल्कुल सीधा और सपाट था जिसका अंत निशा के पास जाकर होता था।पहले रास्ते मे सामाजिक प्रतिष्ठा धूमिल होने का खतरा था।दूसरे