एक और दायरा

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डाॅ.प्रभात समीर मामा फोन पर कह रहे थे- ‘तूने अगर अपनी मामी के ख़त और उसकी कसम के सहारे मुझे ब्लैकमेल न किया होता तो मैं यहाँ तीन महीने तो क्या तीन घन्टे भी न बिताता।’ उनका गुस्सा किसी तरह भी कम होने पर नहीं आ रहा था। मामा यानी मेरी माँ के मुँहबोले भाई। माँ की अंगुली पकड़कर मैंने जो उनके घर में जाना शुरू किया तो आज तक भी वह क्रम वैसा ही बना रहा। मामा और मामी के रिश्ते को परिभाषित करने के लिए त्याग, स्नेह और समर्पण जैसे शब्द भी कम पड़ते थे। मामी मामा की