पिंजरा...

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बहुत सिफारिश के बाद एक कस्बें में मुझे नौकरी मिल गई तो वहाँ जाकर रहने का मसला पैदा हो गया,इसलिए कुछ दिनों के लिए मैनें एक मंदिर की धर्मशाला में शरण ली,दिनभर दफ्तर में काम-काज करता और सुबह-शाम रहने के लिए कमरा तलाश करता,कमरें भी ऐसी जगह मिलते कि वहाँ रहने लायक ही नहीं था,जैसे कि कहीं बदनाम बस्ती, तो कहीं किराया ज्यादा होता, तो कहीं बिजली और पानी की सुविधा नहीं होती,इसलिए रात को मंदिर की धर्मशाला में चटाई पर पड़ा रहता,एक हफ्ते गुजरे ही थे कि पुजारी जी को मेरी हालत पर तरस आ गया और मंदिर में