कर्ज़दार

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कर्ज़दार *** ‘शायद तुम भूल गये हो कि, मंडी में बिका हुआ इंसान किसी की भी बोली लगाने के लायक नहीं होता है।’ *** ‘राहीही।’ ‘हूं?’ ‘एक बात कहूं।’ ‘क्या?’ ‘ये, हर समय उदास से क्यों रहा करते हो तुम?’ ‘ताकि दूसरे की खुशियों का एहसास कर सकूं।’ ‘और तुम्हारी खुद की खुशियां और इच्छायें?’ ‘भूल चुका हूं, मैं उन्हें।’ ‘जीवन मुस्कराकर, जीने में ही गौरव होता है।’ ‘लेकिन, चमन में खिलने वाले हर फूल में खुशबू भी तो नहीं होती है।’ ‘फिर भी भौंरे उनके पास आकर मंडलाया करते हैं?’ ‘मगर बाद में निराश होकर लौट भी तो जाते