शंभूदीन ने बदले हुए हालात देखकर यादवेन्द्र को नेक-सलाह दी थी कि तुमने काफी रूपए कमा लिए हैं, अब तुम मुझे अपने व्यवसाय को बंद कर दो और साथ में यह भी कहा कि जो माल गोदाम में है उसे जल्दी से जल्दी निकाल देना। यादवेन्द्र 'सोने के अण्डे देने वाली मुर्गी' जैसे इस व्यवसाय को छोड़ने के लिए तैयार न था, वह बोला, "इतनी जल्दी इतना माल कैसा निकाला जाएगा।""उसकी तुम चिंता न करो, मैं सारा माल ठिकाने लगवा दूँगा।" - शंभू ने उसकी जिज्ञासा शांत करते हुए कहा।यादवेन्द्र के इस विषय को टालने के लिए कहा, "अभी इतनी