रामायण - अध्याय 7 - उत्तरकाण्ड - भाग 10

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(10) गुरुजी का अपमान एवं शिवजी के शाप की बात सुननासोरठा : * गुर नित मोहि प्रबोध दुखित देखि आचरन मम।मोहि उपजइ अति क्रोध दंभिहि नीति कि भावई॥105 ख॥ भावार्थ:-गुरुजी मेरे आचरण देखकर दुखित थे। वे मुझे नित्य ही भली-भाँति समझाते, पर (मैं कुछ भी नहीं समझता), उलटे मुझे अत्यंत क्रोध उत्पन्न होता। दंभी को कभी नीति अच्छी लगती है?॥105 (ख)॥ चौपाई : * एक बार गुर लीन्ह बोलाई। मोहि नीति बहु भाँति सिखाई॥सिव सेवा कर फल सुत सोई। अबिरल भगति राम पद होई॥1॥ भावार्थ:-एक बार गुरुजी ने मुझे बुला लिया और बहुत प्रकार से (परमार्थ) नीति की शिक्षा दी