रामायण - अध्याय 7 - उत्तरकाण्ड - भाग 6

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(6) श्री राम-वशिष्ठ संवाद, श्री रामजी का भाइयों सहित अमराई में जानाचौपाई : *एक बार बसिष्ट मुनि आए। जहाँ राम सुखधाम सुहाए॥अति आदर रघुनायक कीन्हा। पद पखारि पादोदक लीन्हा॥1॥ भावार्थ:-एक बार मुनि वशिष्ठजी वहाँ आए जहाँ सुंदर सुख के धाम श्री रामजी थे। श्री रघुनाथजी ने उनका बहुत ही आदर-सत्कार किया और उनके चरण धोकर चरणामृत लिया॥1॥ * राम सुनहु मुनि कह कर जोरी। कृपासिंधु बिनती कछु मोरी॥देखि देखि आचरन तुम्हारा। होत मोह मम हृदयँ अपारा॥2॥ भावार्थ:-मुनि ने हाथ जोड़कर कहा- हे कृपासागर श्री रामजी! मेरी कुछ विनती सुनिए! आपके आचरणों (मनुष्योचित चरित्रों) को देख-देखकर मेरे हृदय में अपार मोह