रामायण - अध्याय 7 - उत्तरकाण्ड - भाग 4

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(4) पुत्रोत्पति, अयोध्याजी की रमणीयता, सनकादिका आगमन और संवाददोहा : * ग्यान गिरा गोतीत अज माया मन गुन पार।सोइ सच्चिदानंद घन कर नर चरित उदार॥25॥ भावार्थ:-जो (बौद्धिक) ज्ञान, वाणी और इंद्रियों से परे और अजन्मा है तथा माया, मन और गुणों के परे है, वही सच्चिदानन्दघन भगवान्‌ श्रेष्ठ नरलीला करते हैं॥25॥ चौपाई : * प्रातकाल सरऊ करि मज्जन। बैठहिं सभाँ संग द्विज सज्जन॥बेद पुरान बसिष्ट बखानहिं। सुनहिं राम जद्यपि सब जानहिं॥1॥ भावार्थ:-प्रातःकाल सरयूजी में स्नान करके ब्राह्मणों और सज्जनों के साथ सभा में बैठते हैं। वशिष्ठजी वेद और पुराणों की कथाएँ वर्णन करते हैं और श्री रामजी सुनते हैं, यद्यपि