रामायण - अध्याय 7 - उत्तरकाण्ड - भाग 3

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(3) वानरों और निषाद की विदाईदोहा : * ब्रह्मानंद मगन कपि सब कें प्रभु पद प्रीति।जात न जाने दिवस तिन्ह गए मास षट बीति॥15॥ भावार्थ:-वानर सब ब्रह्मानंद में मग्न हैं। प्रभु के चरणों में सबका प्रेम है। उन्होंने दिन जाते जाने ही नहीं और (बात की बात में) छह महीने बीत गए॥15॥ चौपाई : * बिसरे गृह सपनेहुँ सुधि नाहीं। जिमि परद्रोह संत मन माहीं॥तब रघुपति सब सखा बोलाए। आइ सबन्हि सादर सिरु नाए॥1॥ भावार्थ:-उन लोगों को अपने घर भूल ही गए। (जाग्रत की तो बात ही क्या) उन्हें स्वप्न में भी घर की सुध (याद) नहीं आती, जैसे संतों