तेरे बिना

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तेरे बिना दूसरी मंजिल पर रास्ते की ओर बने अपने कक्ष में बिस्तर पर पड़ी दिव्या, अपने आप को, पापा को, भैया को और सभी घर वालों को कोस रही थी। रात्रि के 12:00 बजने को आए थे । पापा के लाख समझाने और मम्मी के बार-बार मिन्नतें करने के बावजूद कुछ नहीं खाया था। अक्टूबर के महीने के उत्तरार्ध में हल्की गुनगुनी सर्दी प्रारंभ हो गई थी । पलंग के साथ लगे अपने कक्ष की शीशे वाली खिड़की से बाहर आकाश की ओर देखे जा रही थी । उसे यूं आकाश में मुस्कुराते हुए चांद को देखना, टिमटिमाते तारों