रामायण - अध्याय 6 - लंकाकाण्ड - भाग 13

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(13) देवताओं की स्तुति, इंद्र की अमृत वर्षादोहा : * बरषहिं सुमन हरषि सुर बाजहिं गगन निसान।गावहिं किंनर सुरबधू नाचहिं चढ़ीं बिमान॥109 क॥ भावार्थ:-देवता हर्षित होकर फूल बरसाने लगे। आकाश में डंके बजने लगे। किन्नर गाने लगे। विमानों पर चढ़ी अप्सराएँ नाचने लगीं॥109 (क)॥ * जनकसुता समेत प्रभु सोभा अमित अपार।देखि भालु कपि हरषे जय रघुपति सुख सार॥109 ख॥ भावार्थ:-श्री जानकीजी सहित प्रभु श्री रामचंद्रजी की अपरिमित और अपार शोभा देखकर रीछ-वानर हर्षित हो गए और सुख के सार श्री रघुनाथजी की जय बोलने लगे॥109 (ख)॥ चौपाई : * तब रघुपति अनुसासन पाई। मातलि चलेउ चरन सिरु नाई॥आए देव सदा