(12) मन्दोदरी-विलाप, रावण की अन्त्येष्टि क्रियाचौपाई : * पति सिर देखत मंदोदरी। मुरुछित बिकल धरनि खसि परी॥जुबति बृंद रोवत उठि धाईं। तेहि उठाइ रावन पहिं आईं॥1॥ भावार्थ:- पति के सिर देखते ही मंदोदरी व्याकुल और मूर्च्छित होकर धरती पर गिर पड़ी। स्त्रियाँ रोती हुई दौड़ीं और उस (मंदोदरी) को उठाकर रावण के पास आईं॥1॥ * पति गति देखि ते करहिं पुकारा। छूटे कच नहिं बपुष सँभारा॥उर ताड़ना करहिं बिधि नाना। रोवत करहिं प्रताप बखाना॥2॥ भावार्थ:- पति की दशा देखकर वे पुकार-पुकारकर रोने लगीं। उनके बाल खुल गए, देह की संभाल नहीं रही। वे अनेकों प्रकार से छाती पीटती हैं और