रामायण - अध्याय 6 - लंकाकाण्ड - भाग 9

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(9) षष्ठ सोपान- रावण मूर्च्छा, रावण यज्ञ विध्वंस, राम-रावण युद्धदोहा : * देखि पवनसुत धायउ बोलत बचन कठोर।आवत कपिहि हन्यो तेहिं मुष्टि प्रहार प्रघोर॥83॥ भावार्थ:- यह देखकर पवनपुत्र हनुमान्‌जी कठोर वचन बोलते हुए दौड़े। हनुमान्‌जी के आते ही रावण ने उन पर अत्यंत भयंकर घूँसे का प्रहार किया॥83॥ चौपाई: * जानु टेकि कपि भूमि न गिरा। उठा सँभारि बहुत रिस भरा॥मुठिका एक ताहि कपि मारा। परेउ सैल जनु बज्र प्रहारा॥1॥ भावार्थ:- हनुमान्‌जी घुटने टेककर रह गए, पृथ्वी पर गिरे नहीं और फिर क्रोध से भरे हुए संभलकर उठे। हनुमान्‌जी ने रावण को एक घूँसा मारा। वह ऐसा गिर पड़ा जैसे