(6) भरतजी के बाण से हनुमान् का मूर्च्छित होना, भरत-हनुमान् संवाददोहा : *देखा भरत बिसाल अति निसिचर मन अनुमानि।बिनु फर सायक मारेउ चाप श्रवन लगि तानि॥58॥ भावार्थ:- भरतजी ने आकाश में अत्यंत विशाल स्वरूप देखा, तब मन में अनुमान किया कि यह कोई राक्षस है। उन्होंने कान तक धनुष को खींचकर बिना फल का एक बाण मारा॥58॥ चौपाई : * परेउ मुरुछि महि लागत सायक। सुमिरत राम राम रघुनायक॥सुनि प्रिय बचन भरत तब धाए। कपि समीप अति आतुर आए॥1॥ भावार्थ:- बाण लगते ही हनुमान्जी 'राम, राम, रघुपति' का उच्चारण करते हुए मूर्च्छित होकर पृथ्वी पर गिर पड़े। प्रिय वचन (रामनाम)