(3) हनुमान्जी द्वारा अशोक वाटिका विध्वंस, अक्षय कुमार वध और मेघनाद का हनुमान्जी को नागपाश में बाँधकर सभा में ले जानादोहा : * देखि बुद्धि बल निपुन कपि कहेउ जानकीं जाहु।रघुपति चरन हृदयँ धरि तात मधुर फल खाहु॥17॥ भावार्थ:-हनुमान्जी को बुद्धि और बल में निपुण देखकर जानकीजी ने कहा- जाओ। हे तात! श्री रघुनाथजी के चरणों को हृदय में धारण करके मीठे फल खाओ॥17॥ चौपाई : * चलेउ नाइ सिरु पैठेउ बागा। फल खाएसि तरु तोरैं लागा॥रहे तहाँ बहु भट रखवारे। कछु मारेसि कछु जाइ पुकारे॥1॥ भावार्थ:-वे सीताजी को सिर नवाकर चले और बाग में घुस गए। फल खाए और