रामायण - अध्याय 5 - सुंदरकाण्ड - भाग 2

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(2) हनुमान्‌जी का अशोक वाटिका में सीताजी को देखकर दुःखी होना और रावण का सीताजी को भय दिखलाना* जुगुति बिभीषन सकल सुनाई। चलेउ पवन सुत बिदा कराई॥करि सोइ रूप गयउ पुनि तहवाँ। बन असोक सीता रह जहवाँ॥3॥ भावार्थ : विभीषणजी ने (माता के दर्शन की) सब युक्तियाँ (उपाय) कह सुनाईं। तब हनुमान्‌जी विदा लेकर चले। फिर वही (पहले का मसक सरीखा) रूप धरकर वहाँ गए, जहाँ अशोक वन में (वन के जिस भाग में) सीताजी रहती थीं॥3॥ * देखि मनहि महुँ कीन्ह प्रनामा। बैठेहिं बीति जात निसि जामा॥कृस तनु सीस जटा एक बेनी। जपति हृदयँ रघुपति गुन श्रेनी॥4॥ भावार्थ :