रामायण - अध्याय 4 - किष्किंधाकाण्ड - भाग 3

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(3) वर्षा ऋतु वर्णनदोहा : * प्रथमहिं देवन्ह गिरि गुहा राखेउ रुचिर बनाइ।राम कृपानिधि कछु दिन बास करहिंगे आइ॥12॥ भावार्थ : देवताओं ने पहले से ही उस पर्वत की एक गुफा को सुंदर बना (सजा) रखा था। उन्होंने सोच रखा था कि कृपा की खान श्री रामजी कुछ दिन यहाँ आकर निवास करेंगे॥12॥ चौपाई : * सुंदर बन कुसुमित अति सोभा। गुंजत मधुप निकर मधु लोभा॥कंद मूल फल पत्र सुहाए। भए बहुत जब ते प्रभु आए॥1॥ भावार्थ : सुंदर वन फूला हुआ अत्यंत सुशोभित है। मधु के लोभ से भौंरों के समूह गुंजार कर रहे हैं। जब से प्रभु आए,