(2) श्री रामजी का आगे प्रस्थान, विराध वध और शरभंग प्रसंगचौपाई : * मुनि पद कमल नाइ करि सीसा। चले बनहि सुर नर मुनि ईसा॥आगें राम अनुज पुनि पाछें। मुनि बर बेष बने अति काछें॥1॥ भावार्थ : मुनि के चरण कमलों में सिर नवाकर देवता, मनुष्य और मुनियों के स्वामी श्री रामजी वन को चले। आगे श्री रामजी हैं और उनके पीछे छोटे भाई लक्ष्मणजी हैं। दोनों ही मुनियों का सुंदर वेष बनाए अत्यन्त सुशोभित हैं॥1॥ * उभय बीच श्री सोहइ कैसी। ब्रह्म जीव बिच माया जैसी॥सरिता बन गिरि अवघट घाटा। पति पहिचानि देहिं बर बाटा॥2॥ भावार्थ : दोनों के