रामायण - अध्याय 2 - अयोध्याकांड - भाग 17

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(17) श्री रामजी का लक्ष्मणजी को समझाना एवं भरतजी की महिमा कहना* सुनि सुर बचन लखन सकुचाने। राम सीयँ सादर सनमाने॥कही तात तुम्ह नीति सुहाई। सब तें कठिन राजमदु भाई॥3॥ भावार्थ:-देववाणी सुनकर लक्ष्मणजी सकुचा गए। श्री रामचंद्रजी और सीताजी ने उनका आदर के साथ सम्मान किया (और कहा-) हे तात! तुमने बड़ी सुंदर नीति कही। हे भाई! राज्य का मद सबसे कठिन मद है॥3॥ * जो अचवँत नृप मातहिं तेई। नाहिन साधुसभा जेहिं सेई॥सुनहू लखन भल भरत सरीसा। बिधि प्रपंच महँ सुना न दीसा॥4॥ भावार्थ:-जिन्होंने साधुओं की सभा का सेवन (सत्संग) नहीं किया, वे ही राजा राजमद रूपी मदिरा का