(11) सुमन्त्र का अयोध्या को लौटना और सर्वत्र शोक देखनादोहा : * भयउ निषादु बिषादबस देखत सचिव तुरंग।बोलि सुसेवक चारि तब दिए सारथी संग॥143॥ भावार्थ:-मंत्री और घोड़ों की यह दशा देखकर निषादराज विषाद के वश हो गया। तब उसने अपने चार उत्तम सेवक बुलाकर सारथी के साथ कर दिए॥143॥ चौपाई : * गुह सारथिहि फिरेउ पहुँचाई। बिरहु बिषादु बरनि नहिं जाई॥चले अवध लेइ रथहि निषादा। होहिं छनहिं छन मगन बिषादा॥1॥ भावार्थ:-निषादराज गुह सारथी (सुमंत्रजी) को पहुँचाकर (विदा करके) लौटा। उसके विरह और दुःख का वर्णन नहीं किया जा सकता। वे चारों निषाद रथ लेकर अवध को चले। (सुमंत्र और घोड़ों