रामायण - अध्याय 2 - अयोध्याकांड - भाग 4

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(4) श्री राम-कैकेयी संवाद* करुनामय मृदु राम सुभाऊ। प्रथम दीख दुखु सुना न काऊ॥तदपि धीर धरि समउ बिचारी। पूँछी मधुर बचन महतारी॥2॥ भावार्थ:-श्री रामचन्द्रजी का स्वभाव कोमल और करुणामय है। उन्होंने (अपने जीवन में) पहली बार यह दुःख देखा, इससे पहले कभी उन्होंने दुःख सुना भी न था। तो भी समय का विचार करके हृदय में धीरज धरकर उन्होंने मीठे वचनों से माता कैकेयी से पूछा-॥2॥ * मोहि कहु मातु तात दुख कारन। करिअ जतन जेहिं होइ निवारन॥सुनहु राम सबु कारनु एहू। राजहि तुम्ह पर बहुत सनेहू॥3॥ भावार्थ:-हे माता! मुझे पिताजी के दुःख का कारण कहो, ताकि उसका निवारण हो